रिपोर्टर खुलेश्वर
इन दिनों छत्तीसगढ़ के हर जिले व तहसील के, हर विभाग के सरकारी कर्मचारी व अधिकारी अपने हक की लड़ाई लड़ने में मशगूल है, एक अकेले की अर्जी शायद शासन अनसुना कर दे मगर जन समुदाय के एक ही पुकार को शासन अनसुनी कर दे, इतनी उसमें कूवत नहीं है, आम जनता, कर्मचारियों की मांगे पूरी ना करने का मतलब है आमजन से सरकार का मुंह मोड़ना, जिसके बलबूते पर जिसकी एक मोहर, सरकार को आंखों पर बिठा सकती है, तो क्या सरकार को गिरा नहीं सकती।
कर्मचारी संगठन कभी सरहद पर तो कभी जंगल पर कभी दुश्मन से देश को तो कभी जानवर से आम लोगों की सुरक्षा का भार लिए कदम कदम पर मौत का सामना करते हैं, कभी गुरु बनकर देश के हित की लड़ाई का और लोगों की भलाई का हुनर प्रदान करते हैं, यही देश के हित के लिए ,और अपने परिवार के हित के लिए, सरकार से गुजारिश कर रही है, तो बुराई क्या है? हर वर्ग का कर्मचारी अधिकारी आज किसी भी ओहदे पर हो , किसी ना किसी रूप में वह जनता के करीब ही है।
बीते रात और उससे पहले के बीती रात को फरसाबहार क्षेत्र के ग्राम लकराघरा व ग्राम सिमाबारी में हाथियों ने अचानक हमला बोल दिया और लकराघरा निवासी लखन साय पिता गौतम के घर के दीवारों को तोड़कर घर में रखे धान को खा कर पेट भरा,पश्चात वहां से हो हल्ला कर भागने लगे पर लकराघरा में ही कौशल साय पिता घुरन के घर को धांसकर मस्त चाल में आगे बढ़ गए। तीन हाथियों का यह दल जिसमें एक बच्चा और मादा हाथी दोनों है, रात के अंधेरे में चुपके से बस्ती में घुसकर दीवार तोड़कर धान व घर में रखे सामान को तोड़-फोड़ कर देते हैं, ग्रामीणों के द्वारा टार्च व मशाल व उनके चिल्लाने की वजह से हाथी अपना रास्ता बदल कर जंगल की ओर भाग जाते हैं, ग्रामीणों द्वारा वन परिक्षेत्र अधिकारी व वन कर्मी से संपर्क किए जाने पर भी कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा है, इस तरह से ग्रामीणों को रात्रि जागरण कर हड़ताल में बैठे वन कर्मी की भूमिका निभाना पड़ रहा है, बीती रात भी लकराघरा में दो घरों को क्षति पहुचाने के बाद ग्राम सिमाबारी के वनमुंडा बस्ती में वही तीन हाथियों का दल जगमोहन भगत नामक व्यक्ति व नेहरू पिता रमेश का घर को उजाड़ कर घर में रखे धान और चावल को खाया, ग्रामीणों ने बताया कि पूरे बस्ती वाले के चिल्लाने से भी हाथी नहीं भागा , नाका व रेंजर से संपर्क साधने पर कहा जाता है कि उनका हड़ताल चल रहा है, क्षतिपूर्ति हेतु पटवारियों से सम्पर्क करने पर उनका भी जवाब हड़ताल है, हाथी भगाने वाला टॉर्च ग्रामीणों के पास उपलब्ध नहीं होने से इस तरह का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है, ग्रामीणों ने यह भी बताया कि 14 हाथियों का झुंड अंबाकछार, सहसपुर,और सीमाबारी के जंगलों में विचरण कर रहे हैं कभी भी कहीं भी अनहोनी होने की संभावना है,इस तरह के खतरों से जूझता ग्रामीणों की खबर से बेखबर शासन को यह संदेश है कि कल के दिन नाग लोक व अन्य इलाकों में सर्पदंश, हाथियों के कुचले जाने, दुर्घटना व तबीयत खराब हो जाने से डॉक्टर के पास जाने पर, डर है, कि कहीं डॉक्टर यह ना बोल दे कि हमारा तो हड़ताल चल रहा है।
हाथियों के दल ने पूरे फरसाबहार के इलाकों को घेर लिया है, इन हाथियों को खदेड़ेगा कौन, खदेड़ने वाले तो हड़ताल में हैं, किसान जिनके पिता मर गए हों, और उन्हें फौती नामांतरण के लिए अप्लाई करना है, क्योंकि उसे अगले सत्र में धान बिक्री हेतु पंजीयन कराना है, वो कहां जाएगा न्यायालय, पर न्यायाधीश भी तो हड़ताल में है। बच्चा जब वेग पकड़कर स्कूल पहुंचता है, और स्कूल का मेन गेट खुलने का इंतजार करता रहता है, लेकिन समय होने पर गेट नहीं खुलता, कोई आकर कहता है कि आपके गुरुजी लोगों का हड़ताल चल रहा है,स्कूल बंद रहेगा, तब उसके चेहरे पर मायूसी नजर आती है, क्योंकि उसे उसी वक्त उसका सुनहरा भविष्य धुंधला नजर आता है।