संस्कृति जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत ने आदिवासियों के बीच ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार पर जताई चिंता, कहा अरुणाचल प्रदेश में मिश्मी जनजाति के साथ हुए धर्मांतरण के दुष्प्रभाव को मध्य भारत विशेषकर छत्तीसगढ़ की उरांव जनजाति को सीख लेनी होंगी, - Chhattisgarhkimunaadi.com

Breaking

Home Top Ad

मध्यप्रदेश़/छत्तीसगढ के सभी जिलों में संवाददाता की आवश्यकता है इच्छुक व्यक्ति ही संपर्क करें 9644565147,8889471190 छत्तीसगढ़/मध्यप्रदेश के सभी जिलों में संवाददाता की आवश्यकता है इच्छुक व्यक्ति ही संपर्क करें 9644565147,8889471190
हिंन्दी न्यूज |अंग्रेजी न्यूज|नौकरी|CGjobse.in|रायपुर|कोरोना|जशपुर|देेश-विदेश|राजनीतिक|हिंन्दी न्यूज |अंग्रेजी न्यूज|नौकरी|CGjobse.in|रायपुर|कोरोना|जशपुर|देेश-विदेश|राजनीतिक

गुरुवार, 11 नवंबर 2021

संस्कृति जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत ने आदिवासियों के बीच ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार पर जताई चिंता, कहा अरुणाचल प्रदेश में मिश्मी जनजाति के साथ हुए धर्मांतरण के दुष्प्रभाव को मध्य भारत विशेषकर छत्तीसगढ़ की उरांव जनजाति को सीख लेनी होंगी,

  


जशपुरनगर। पूर्व अजाक मंत्री एंव अखिल भारतीय जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत ने तथाकथित सुधारवादियों की आड़ में ईसाई मिशनरियों द्वारा सुधार और संरक्षण के नाम पर मिश्मी सहित जशपुर व छत्तीसगढ़ में निवासरत देश के जनजाति आस्था और संस्कृति को कमजोर किया जाना बताया है।


आदिवासियों के बीच ईसाई धर्म के प्रसार के प्रभाव पर अरुणाचल प्रदेश की मिशमी जनजातियों पर आधारित एक अध्ययन केस स्टडी का हवाला देते हुए गणेश राम भगत ने बताया कि दुनिया भर के हर समाज की अपनी विश्वास प्रणाली है जो हर क्षेत्र में पनपने के लिए समाज की आधारशिला है।  इसमें कोई भी परिवर्तन समाज के भीतर विरोध का कारण बन सकता है।  उत्तर पूर्व भारत विभिन्न आदिवासी समूहों का घर है, जिनके जीवन के विभिन्न तरीके और विश्वास प्रणाली हैं।  प्रत्येक समूह की अलग-अलग बोली, भाषा, पहनावा, आस्था है, लेकिन वे शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और भाईचारे में विश्वास करते हैं जो उन्हें एक साथ रखता है।   उक्त अध्ययन तथ्यात्मक बिंदुओं पर कुछ प्रकाश डालता है कि कैसे तथाकथित सुधारवादियों की आड़ में ईसाई मिशनरियों द्वारा सुधार और संरक्षण के नाम पर मिश्मी सहित उरांव व अन्य जनजाति आस्था और संस्कृति को कमजोर किया जा रहा है।  


गणेश राम भगत ने अध्ययन के संदर्भ में जानकारी देते हुए कहा है कि मुख्य रूप से चीन की सीमा से लगे अंजॉ और लोहित जिलों में।  मिश्मी  प्रकृति, सूर्य और चंद्रमा की पूजा करती हैं;  उनके पास अपनी धार्मिक प्रथाओं का मार्गदर्शन करने के लिए कोई धार्मिक पुस्तक या पैम्फलेट नहीं है।  1990 के दशक के अंत में, कुछ ईसाई मिशनरियों ने क्षेत्र में विकास लाने के बहाने निर्दोष मिश्मी को ईसाई धर्म में परिवर्तित करना शुरू कर दिया।  ईसाई मिशनरियों ने मिशमी को यह कहकर धर्मान्तरित किया कि ईसाई धर्म में परिवर्तन उनके जीवन को खुशी और सफलता से भर देगा।  मासूम मिशमी को धर्मांतरण के लिए राजी कर लिया गया, जिससे परिवारों और रिश्तेदारों को अलग कर दिया गया और धर्मांतरित मिशमी ने ईसाई धर्म को बढ़ावा देना शुरू कर दिया और मूल मिश्मी आस्था और संस्कृति के खिलाफ दुर्भावना दिखा दी।  अब तक, ईसाई मिशमी, जो कुल आबादी का लगभग 15% है, ने गैर-ईसाई मिशियों के लिए शांति से रहना मुश्किल बना दिया है।  


उन्होंने कहा कि  मिश्मी अरुणाचल प्रदेश के सबसे पूर्वी भाग में रहती हैं, वर्तमान में मिश्मी को दो समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है।  ईसाई मिश्मी और स्वदेशी मिश्मी।  सुधार के नाम पर मिश्मी धीरे-धीरे अपनी पहचान और संस्कृति खोती जा रही हैं।  कुछ हद तक, ईसाइयों द्वारा स्वदेशी विश्वास और संस्कृति सुधार राजनीति से प्रेरित है, जो लंबे समय में समाज के लिए हानिकारक है।  जनजातियों की स्वदेशी आस्था और संस्कृति को बढ़ावा देने और संरक्षित करने के लिए विभिन्न संगठनों द्वारा प्रयास किए जाते हैं।  एक सभ्य इंसान के रूप में, प्रत्येक व्यक्ति को हर धर्म/धर्म का सम्मान करना चाहिए। निहित स्वार्थों के लिए किसी की मान्यताओं को धक्का देना गैर-धार्मिक और अस्वीकार्य है।  इसलिए, दुनिया भर के प्रत्येक समाज को अपने विश्वास और संस्कृति को संरक्षित और संरक्षित करने की आवश्यकता है।  आखिरकार, 'संस्कृति का नुकसान पहचान का नुकसान' है।

जशपुर जिले में छत्तीसगढ़ की स्थिति पर भी पूर्व मंत्री गणेश राम भगत ने गंभीर चिंता जताते हुए कहा कि ईसाई मिशनरियों के साथ न सिर्फ समाज को बल्कि परिवार को विघटित कर दिया गया है जिससे जनजातीय संस्कृति को अपूरणीय क्षति हुई है। उन्होंने इस प्रकार के कृत्य को दुर्भाग्य जनक बताते हुए देश की एकता और अखंडता के लिए भी बाधक बताया और कहा कि नियोगी कमेटी की रिपोर्ट का सहज स्मरण हो जाता है, जिसकी उपेक्षा की गई।

उल्लेखनीय है कि आयोग ने धर्मान्तरण पर कानूनी रूप से रोक लगाने की सिफारिस की थी जिसे लागू नहीं किया गया।

 जिस तरह नियोगी कमेटी के रिपोर्ट की उपेक्षा की गई और समाज को बांटने वाले तत्वों को इसका लाभ मिला, जिसका दुष्परिणाम यह है कि आज एक ही जनजाति के लोग आपसी वैमनस्य भेदभाव के साथ बटे हुए हैं।

उक्त बातें गणेश राम भगत जी ने भारत सरकार के द्वारा 15 नवम्बर को धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को राष्ट्रीय जनजातिय गौरव दिवस घोषित करने के अवसर पर कहा ,श्री भगत ने बताया कि भारत सरकार देश मे रहनी वाली 11 करोड़ जनजातियों की संस्कृति और आस्था का सम्मान करते हुए वर्ष में एक दिन यह तिथि घोषित किया है ऐसे समय में विभिन्न जनजातियों को उनकी संस्कृति और आस्था प्रदर्शित करने का अवसर मिलेगा जो देश के जनजातियों के इतिहास में मिल का पत्थर साबित होगा।

"
"